व्यंग दर्शन ईश्वर के होते है या अप्सरा के
आज शिवरात्रि के दिन मंदिरो मे बहुत ही भीड़ लगी हुई थी | लोग पूजा अर्चना करने के लिये गये थे जिनमे बूढ़े कम जवान ज्यादा थे लोग भगवान को कम और उन्हें ज्यादा देख रहे थे वो बहुत ही सुन्दर सुंदर नये नये छोटे छोटे नन्हे नन्हें कपड़े पहने हुयी थी जो कमाल कर रही थी |
जिनमे महिलाये कम लड़कियां ज्यादा थी जो अलग अलग जोडे मे अपनी अपनी इच्छाये व्यक्त कर रही थी शायद पता नही शिवरात्रि का, या वेलंटाइंडे का मजा ले रही थी |
आज लड़के तो मंदिर मे नये नये कपड़े पहन कर सुबह से शाम तक धूनी रमा के अडे हुये थे
जो बदल बदल कर कपडे ओर गाड़िया ला ला कर पहरा दे रहे थे न मालूम वह क्या ढूँढ रहे थे
हर एक को बड़े ही ध्यान से सुंदर निगाहे से झाँक रहे थे |
और ऐसा नही की लड़के ही निहार रहे थे ,नही वो भी सुंदर निगाहो से कातिल कर रही थी
मै बार बार यही सोच रहा था कि ईश्वर मन मे होता है कि मंदिर मे|
ईश्वर अमीर मे होता है या गरीब मे
लोग ईश्वर के दर्शन करने जाते है कि सुंदर सुंदर अफसराओ के
लोग बूढ़े मा बाप को छोड़कर
मंदिर मे किस लिये जाते है
हे ईश्वर तेरी माया कही तन है कही काया
✍कृष्णकांत