जय परशुराम
कर में परशु, सिर पर जटाएँ, वेद मुख से झर रहे।
भृगुवंश के आराध्य की हम, आज पूजन कर रहे।।
सत्कर्म का सद्धर्म का जब, लोप हो जाता कहीं ।
तब वीर रस के रूप में यह, सूर्य उग जाता वहीं।।
जगदीश शर्मा सहज
कर में परशु, सिर पर जटाएँ, वेद मुख से झर रहे।
भृगुवंश के आराध्य की हम, आज पूजन कर रहे।।
सत्कर्म का सद्धर्म का जब, लोप हो जाता कहीं ।
तब वीर रस के रूप में यह, सूर्य उग जाता वहीं।।
जगदीश शर्मा सहज