जय देवी***
देवी के मंदिर सर झुका कर
फल-फूल धुप बत्ती
वस्त्र श्रृंगार चढ़ा कर
भक्ति बखान
दण्डवत् नमन तेरा,
पत्थर की मूर्ति पर अपार श्रद्धा
हैरान भगवान भी
हैरान मैं भी
क्यों की तेरी टेड़ी नजर देखी,
मैंने भी और
उसने भी
मुझ जीती जागती देवी पर,
हैरान भगवान भी
हैरान मैं भी,
हैरान हर वो इंसान भी जो देखता है देवी उस पत्थर में भी
मुझ हाड़-मांस में भी,
मैं भी तो देवी हूँ
जीती जागती
मैं नारी हूँ।
****दिनेश शर्मा****