जय जय भैरव जय भगवती (कविता वीर राजा सलहेशक)
सोमदेव गोरी सोन लाल कें पाबि,अमल हिय जुरायैत
कें जानैत ऐही जग वासि,अन्हियारा तर दीप जलायैत
महिसौथा जनम भू तिरपत,लोचन भुवन पुष्प बरसायैत
वरण पैघ नहि चौहरमल संगे, जौं इ तरुआरि उठायैत
जय जय भैरव जय भगवती,चाँहुदिस जन जन हर्षायैत
कालक काल महाकाल,अरि देखि जाघथाप सँ धाएबैत
प्रेम पाति नहि जाने जग केओ,चारटा राधा नै जानैत
विराटनगर सत्यवती धिया,हलिस हँसि नितू गौरी पूँजैत
अलट केँ सयबेर देता भू छीनी चाहे रिपू लिधुर बरसायैत
जय जय भैरव जय भगवती, चाँहुदिस जन जन हर्षयैत
एक बेरि आबी देव मिथिला मधुर धुआ पाग देखायैत
फेरोँ अंगमिथिला भेद नहि,अटोर दुआर हीया मिलाबैत
हिंसक मनुख अतय पावन धरा,गुनि गुनी दिनु बिगारैत
श्रीहर्ष चारटा पोथि में,तोर विरगाथा आतुर भ उतारैत
जय जय भैरव जय भगवती, चाहुँ दिस जन जन हर्षायैत
मौलिक एवं स्वरचित
© विद्या नन्द सिंह (उपनाम-श्रीहर्ष आचार्य)