जय गणेश
जय गणेश कलि
कष्ट निकंदन।
दीन दुखी जन के
उर चंदन ।।
चार भुजा शोभित
अति सुंदर।
शिव गौरी बिहरित
मन मंदिर ।।
वक्र तुंड लम्बोदर
देवा ।
सकल जगत जन
करते सेवा ।।
सहज कृपा की
करते वृष्टि ।
पोषित होती है
सब सृष्टि ।।
धरते ध्यान तुम्हारा
जो जन।
रहे न कभी क्लेश
भरा मन ।।
श्रेष्ठ बुद्धि बल दाता
हो तुम ।
शरणागत के त्राता
हो तुम ।।
करो कृपा प्रभु अपने
जन पर।
रहे न विपति भार कुछ
तन पर ।।
– सतीश शर्मा , गणेशनरसिंहपुर(म.प्र.)