जयति जय दुर्गा भवानी
जयति जय दुर्गा भवानी।
तुम सकल वरदानदानी।।
हरि शयन करने सिधारे,
देवता हा-हा पुकारे ।
मात ने मधु और कैटभ,
दैत्य शुम्भ-निशुम्भ मारे।।
कल्प का उद्गम निकट था,
और था चहुँओर पानी ।
कालिका काली कपाली,
आपकी शोभा निराली ।
दानवों पर कूद पड़तीं ,
सिंह पर होकर सवाली।।
सूक्ति हो या वेद सबने,
मात की महिमा बखानी ।
सृष्टि का उद्भव तुम्हीं से,
सृष्टि का विप्लव तुम्हीं से।
तुम दया करुणामयी हो,
जय विजय सम्भव तुम्हीं से।।
तुम जगत की प्राणदाता,
तुम सकल कल्याण दानी ।
— जगदीश शर्मा.