जमीदार की कहानी
ग्राम राजा के ताल में एक जमीदार था यदि किसी की डोली रास्ते से जाती थी तो बह डोली को लूट लेता था और अपने साथ लूटा हुआ समान घर पर ले आता था एक दिन ग्राम धीरपुरा की डोली हिरनगाँव रास्ते से जा रही थी तो उस जालिम जमीदार द्वारा डोली को लूट लिया और लुटी हुई डोली के घरवाले जब रास्ते में आ रहे थे तब रास्ते में उनको पंडित तेजसिंह तिवारी के दो पुत्र मिले और उन्होंने अपने साथ हुई घटना का पूरा वृत्तांत उनको बताया घर आकर उन्होंने इस घटना का जिक्र अपने पिता एवं बड़े भाई पंडित खुशालीराम तिवारी से किया यह सुनकर पिता एवं पुत्रों का खून खौल गया उन्होंने जमीदार को सबक सिखाने के लिए एक योजना बनाई और दोनों भाई उमराव सिंह एवं देवीराम एक दिन रास्ते में घात लगाकर बैठ गये जमीदार को अपनी तरफ आता देख कंबल ओढ़ कर खड़े हो गए जैसे ही जमीदार अपने घोड़े से उतरकर उनके पास आया और उसने पूछा कि आप यहां पर क्यों बैठे हैं वह शांत रहे और कुछ नहीं बोले थोड़ी देर बाद अचानक जमीदार से दोनों भाइयों ने कहा कि आपके पैर के नीचे सांप है जैसे ही जमीदार पैर के नीचे सर्प समझ कर नीचे झुका तभी दोनों भाइयों ने जमीदार पर कटारी से आक्रमण कर दिया और जमीदार का कत्ल कर दिया सजा के डर से दोनों भाई कत्ल कर कलकत्ता चले गए और अपनी पहचान छुपा कर वहां रहने लगे वहीं पर दोनों भाइयों की मृत्यु हो गई और वह दुवारा लौट कर अपने ग्राम वापस नहीं आ सके