जमाना हस रहा है मेरी हार पर
जमाना हस रहा है मेरी हार पर..,
जिंदगी कहां चलती है उदार पर |
जीना पड़ता है जिंदगी के सार पर,
भरोसा दिल से करो अपने यार पर |
तोडकर चला जाए कोई दिल तुम्हारा,
इतना भी भरोसा मत करो प्यार पर |
सीरत का मोल ना हो कोई रिश्तो में
इतना मोहित मत होना , दीदार पर |
किसी को घर बैठे नहीं मिलती मंजिलें,
आखिर शेर भी जाता है शिकार पर |
✍कवि दीपक सरल