जब हम बच्चे थे
जब हम बच्चे थे,
कितने अच्छे थे।
बुद्धि के कच्चे थे,
पर मन के सच्चे थे।।
मां के हांथों खाना
छोड़ आधूरे जाना।
लौट दुबारा आना,
कहना मां खिलाना।।
चीखना – चिल्लाना,
पिताजी का ताड़ना।
मां का हमें बचाना,
आंचल में छुपाना।।
ओ दिन याद आते हैं,
निर्दोषता सिखलाते हैं।
बचपन ऐसा होता है,
भोलापन कैसा होता है।।
जयशंकर नाविक