जब हम छोटे बच्चे थे ।
जब छोटी – छोटी बातों में
हम खुशियां बहुत संजोते थे ।
उन्मुक्त हंसी होठों में थी
आंखों में स्वप्न पिरोते थे ।
था नही ज्ञान ज्यादा कुछ भी
पर सारे रिश्ते सच्चे थे ।
ये बातें मगर पुरानी हैं
तब हम सारे बच्चे थे ।
सबके दुःख में मन दुःखी हुआ
सबके सुख में खुश होते थे ।
न जाति धर्म के बंधन थे
न वर्ग भेद कुछ होते थे ।
न कोई छद्मता थी मन में
मन वाणी सब प्रतिबिम्बित थे ।
उर में कोई प्रतिबन्ध नहीं
हास्य रुदन सब सम्मुख थे।
जब बड़े हुए तो ज्ञान हुआ
सब सामाजिक आचारों का ।
प्रवीण हुए संस्कृतियों में
सब ज्ञान हुआ व्यवहारों का ।
है खेद मगर कुछ छूट गया
जो मानव सुलभ प्रवृत्तियां थी ।
आगे बढ़ने की जल्दी में
छोड़ी सब सहज सुवृत्तियां थीं।