*जब से सनम आए हो आगोश में*
जब से सनम आए हो आगोश में
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जब से सनम आए हो आगोश में,
दो पल रहे ना हम कुछ भी होश में।
खिल सा उठा छू कर मेरा तनबदन,
देखा तुझे तब से पूरे जोश में।
लूट सा गया हूँ जब से देखा तुझे,
कुछ ना रहा बाकी दिल के कोष मे
पागल हुआ तन-मन मेरा हमनशीं,
जब से पड़ी ध्वनि आने की गोश में।
हो क्यों ख़फ़ा हम से किस बात पर,
यूं हो गये हैँ प्रिय हम किस दोष मे।
मिलता नहीं है मनसीरत मौका कहीं,
जी भर करों बातें आओ ना रोष में।
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सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)