*जब से मुकदमे में फॅंसा, कचहरी आने लगा (हिंदी गजल)*
जब से मुकदमे में फॅंसा, कचहरी आने लगा (हिंदी गजल)
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1)
जब से मुकदमे में फॅंसा, कचहरी आने लगा
लौटते में साथ अपने, कचहरी लाने लगा
2)
हर मुकदमा लीलता है, यों समूची जिंदगी
दादा गए तो हाजिरी, पौत्र लगवाने लगा
3)
मुॅंह कचहरी की तरफ को, भूल कर करना नहीं
भुक्तभोगी ज्ञान का यों, सार बतलाने लगा
4)
खंडहर-सा हो गया वह, भव्यतम जो था महल
भाइयों का क्लेश जब से, कचहरी जाने लगा
5)
धूप पर अधिकार किसका, बस मुकदमा था यही
जब चला लंबा मुकदमा, धूप को खाने लगा
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर ,उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615 451