जब से जान-ए-वफ़ा,
जब से जान-ए-वफ़ा,
दूर तुम हो गयी,,
तब से मंजिल,
अंधेरो में गुम हो गयी ।
मैं फिरूँ खोजता,
हर गली हर डगर,,
ऐ मेरी ज़िंदगी
तू कहाँ खो गयी।
जब से जान-ए-वफ़ा,
दूर तुम हो गयी,,
तब से मंजिल,
अंधेरो में गुम हो गयी ।
मैं फिरूँ खोजता,
हर गली हर डगर,,
ऐ मेरी ज़िंदगी
तू कहाँ खो गयी।