जब से जहां से खो गई चिट्ठियां
जब से जहान से खो गई हैं चिट्ठियां
तभी से प्रीत जहान से पराई हो गई
खूब लिखते थे,प्यार भरे प्यारे खत
पाते थे खूब प्रेमसंदेश भरे हुए खत
खत- विदाई संग प्रीत पराई हो गई
तभी से प्रीत जहान से पराई हो गई
सुखदुख का संदेश देती थी चिट्ठियां
खुशखबरी खूब सुनाती थी चिट्ठियां
चिट्ठियों संग भावनाएं सदाई हो गई
तभी से प्रीत जहान से पराई हो गई
डाकिए की घंटी संग ,धड़के था दिल
डर लगता था कहीं टूट ना जाए दिल
साईकिल घंटी की बंद सुनाई हो गई
तभी से प्रीत जहान से पराई हो गई
खतो में लिखा लगता था सच्चा प्रेम
मोतियों से अक्षरों में झलके था प्रेम
नीले रंग बिना जग में तन्हाई हो गई
तभी से प्रीत जहान से पराई हो गई
कहीं फटा होता गर चिट्ठी का कोना
अंदेशा होता अपना हो गया बेगाना
खतों में छिपे भावों बेवफाई हो गई
तभी से प्रीत जहान से पराई हो गई
खतों में होता था प्रेम- प्यार का जोर
मोबाइलों में तो है प्रेम-प्यार का शोर
खतों संग प्रीत रीत गुमशुदगी हो गई
तभी से प्रीत जहान से पराई हो गई
जब से जहान में खो गई हैं चिट्ठियां
तभी से प्रीत जहान से पराई हो गई
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)
9896872258
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