जब से ख्वाबों में
जब से ख्वाबों में तेरा आना हुआ
सारी दुनिया से मैं बेगाना हुआ
दिल मेरा आजकल लगता नहीं
बस तेरे प्यार में मैं दिवाना हुआ
दिल ये मेरा तुझको ढूंढें यहां हर घड़ी
तू जो आती नहीं मुझे ये फिकर है बड़ी
तू मिले तो शुरू हो जाये प्यार वाली झड़ी
सोचता हूं कहीं न टूटे मिलन की कड़ी
चाहतों की गली में आना जाना हुआ
तुझसे मिलके जवां मैं फसाना हुआ
जब से ख्वाबों………………
मन के मोर को जैसे मिल गयी फूलझड़ी
जो उतर ना सके कभी तू वो नशे सी चढ़ी
तेरे संग जीने मरने की मुझको आदत पड़ी
मेरे हाथों में पहना दे उम्र भर की हथकड़ी
मेरा जो तेरे दिल में ठिकाना हुआ
इन लबों पे हंसी ये मेरा तराना हुआ
जब से ख्वाबों…………………………
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन की अलख
अनुराग में लिप्त
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर,छ.ग.