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29 May 2017 · 1 min read

जब शब्द बनते हैं तेरी यादों के रंगी तितलियां।

तेरी यादों के कुछ रंगीं लम्हे होकर के शब्द भी उड़े बनकर तितलियां ??
सताती है जो वेदना मुझे तेरी जुदाई की
आज वो फिर निकली हैं लगाके पंख यादों के।

बनी है डायरी के पन्नों में
सोए हुए शब्दों की रंगीं तितलियां।
रात भर महकाती तेरे साथ मेरे बीते लम्हे
वो हसीं यादों के वादों की रंगीं तितलियां।

एक-एक शब्द मेरी डायरी के लिखें पन्नों का
शरद रातों को मधुमास बना देता है
हर एक शब्द थिरकता है श्याम संग राधा सा।
प्रेम की यादों की परिभाषा ही बदल देता है।

साँझ ढलते ही मैं बनाती हूँ
उन्हीं शब्दों की फिर से रंगीं तितलियां
वे फिर से महकाती हैं दिल के बागों को
रोशनी से ,वो तितलियां जुगनू बनकर
जगा लेती हैं अँधेरों के चिरागों को।

पूछो मत हाल -ए -दिल तुम मुझसे
मैं हर याद को शब्दों में ही जी लेती हूँ।
हर इक पल डूब जाते हैं मुझ में जो तेरे संग बीते।
साँझ होते ही मैं बनाती हूं उन शब्दों की रंगीं तितलियां।

नीलम शर्मा

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