जब वो मिलेगा मुझसे
जब वो मिलेगा मुझसे !
क्या आंख मिलायेगा ?
गले लगेगा मुझसे,या बस मुस्करायेगा ?
निगाहें करेंगी बयां कुछ,
या बस खामोश रहकर चला जाएगा।
नहीं!
वो नजरें ज़मीं में गड़ाकर आएगा,
ना देखेगा मुझको, ना मुस्कुरायेगा!
जैसे हमारी पहली मुलाक़ात हो,
कुछ इस तरह से पेश आएगा।।
जबां से नहीं!
मगर मैं निगाहों से कुछ बोलूंगा।
पहली, दुसरी, तीसरी, चौथी, पांचवीं
सब मुलाकातों का राज खोलूंगा,
वो मुकर जाएगा, मेरी हर बात से
जानता हूं मैं!
इसलिए ही तो, तराजू पर नहीं
निगाहों से तौलूंगा।।
छोड़ दूंगा आजाद परिंदे-सा गगन में,
उसे मोड़कर दुबारा नहीं देखूंगा!
बस इक धधक उठी है दिल में।
आख़िरी दफा़ जब वो मुझसे दूर जाएगा,
थोड़ा दूर जाकर पलटेगा,देखेगा मुझको
देखना बस यही है क्या वो पहले जैसा मुस्कुरायेगा।।
~ विवेक शाश्वत ✍️