जब वो चलती है
देख उसे सूरज छुप जाता है, सावन घिर-घिर आता है,
राहों के फूल हँसते है, बसंती पवन ठहर जाती है l
वो जब भीगी-भीगी जुल्फें झटकती है,
तब जमीं पर मोतियों की बारिश होती है l
जुल्फे बिखेर कमर मटका के जब वो चलती है,
खिड़किया खुल जाती है, गलियों में हलचल होती है l
वो सजधझ के गगरी भरने पनघट को जाती है,
उसकी पायल छन- छन छनकती है ,धड़कने रुक सी जाती हैl
देख उसे राह के झुरमुट तरूवर भी झूमते है,
जमीं भी उसके कोमल पैरों को चुमती है l
उसकी मधु वाणी में जाने क्या जादू है,
बागो की कोयल भी उसकी बोली बोलती है l
नीला अंबर उड़ता बादल चुपके-चुपके,
उसके चांद सा चेहरा को हर रोज झाँकता है l
उसकी चुनरी से शाम-ए-बहार लिपट जाना चाहती है,
उसकी नीली झील अंखियाँ तले सूरज डूबता है l
हो के मस्त मगन वो तितली सी इठलाती फिरती है l
मेहन्दी भी उसके हाथों में,पैरों में रंग जाना चाहती हैl
कवि भी तसव्वुर में उसकी खों जाना चाहता है,
वो मासूम वो नादान जूही की कली औ’ मालती है
दुष्यंत कुमार पटेल