जब रंग हजारों फैले थे,उसके कपड़े मटमैले थे।
जब रंग हजारों फैले थे,उसके कपड़े मटमैले थे।
जेबों में खोंटे थे सिक्के , वो भीड़ में भी अकेले थे।
वो दूर अकेले कोने में , सपनों के सूखे डोने में।
कंधे पर पतवार लिए, जीवन की सूखी हार लिए।
सपनों से धूल हटाते हैं, पर बार बार आ जाते हैं ।
जीवन का सच ही है माटी, पर भूख अभी भी है बांकी।