जब मरहम हीं ज़ख्मों की सजा दे जाए, मुस्कराहट आंसुओं की सदा दे जाए..
जब मरहम हीं ज़ख्मों की सजा दे जाए,
मुस्कराहट आंसुओं की सदा दे जाए।
खामोशी में एक चीख़ उठा करती है,
एहसासों में एक तीर चुभा करती है।
मुद्दतों बाद सफर सवाल करता है,
निशान क़दमों से मिलने का मलाल करता है।
आशाएं ज़हन को चोट देती हैं,
गूंज दस्तकों को उठने से रोक देती हैं।
बातें जमींदोज खुद को करती है,
ख्वाहिशें अपने हीं पंखों को कतरती हैं।
दिल में एक गुबार उठा करता है,
अनकहे आंसुओं से जो प्यार करता है।
लहरों पर उठती रवानगी याद आती है,
भूली कहानियों की दीवानगी साथ लाती है।
दर्द धड़कनों में घुल के चला करते हैं,
ख्वाब आवारगी का नशा करते हैं।
पहेलियाँ सुलझने से डरा करती हैं,
जज्बातों को होश फ़ना करती है।
लब्ज पन्नों में उतर आते हैं,
रूह को शिद्दत से, जो सहला जाते हैं।