जब मन में आये हर्ष प्रिये.. ऐसा अपना नववर्ष प्रिये
जब मन में न हो हर्ष प्रिये,,
समझो सब कुछ है व्यर्थ प्रिये,,
फिर कैसा यह नव वर्ष प्रिये,,
जब दिल में ना हो हर्ष प्रिये,,
न फसल नयी, न खेत नये,,
न प्रकृति नयी, न पेड़ नये,,
स्कूल से लेकर वित्त विभाग,,
न बही नयी, न भेष नये,,
जब नया नहीं कुछ अर्थ प्रिये,,
फिर कैसा यह नववर्ष प्रिये.,
बच्चे बूढ़ों का बुरा हाल,,
पशु पक्षियों के लिए काल,,
यह सर्द हवा के पहरे से,,
जब कांप रहे नर कंकाल,,
खुशी हुयी सब व्यर्थ प्रिये,,
फिर कैसा यह नववर्ष प्रिये.,
सब शहर ढ़के, सब गांव ढ़के,,
सब चेहरों से लेकर पांव ढ़के..
जब सर्दी के धुंध कुहासा से,,
यह धरा ढ़की, आकाश ढ़के,,
यह तो हुआ अनर्थ प्रिये,
फिर कैसा यह नववर्ष प्रिये,,
बस चंद मास तक रुको जरा,
निज मन मस्तिक को सुनो जरा,
जब शुभ प्रभात हो सूर्य उदय.
फागुन का रंग भी चुनो जरा,,
जब मन में आए हर्ष प्रिये,,
अपना होगा नववर्ष प्रिये,,
यह धुंध कुहासा हट जाएगा,,
रातों का राज्य सिमट जाएगा,,
और हवा मन-भावन होगी,,
जीव जगत सब हर्षायेगा,,
तब “नव” का है अर्थ प्रिये,,
ऐसा अपना नववर्ष प्रिये,,
प्रथम चैत्र का दिन आ जाये,,
धरा गगन भी सब खिल जाये,,
“भारतीय नववर्ष” मनाओ,,
एस. कुमार मन भी खिल जाये,,
फ़लदायक हो यह वर्ष प्रिये,,
ऐसा अपना नववर्ष प्रिये,,