जब भौंरा उपवन नष्ट करे
जब ठगे किसान किसानो को
और मानव मानव को चूसे
जब भौंरा उपवन नष्ट करे
नेता जेबों मे धन ठूसे
जब विद्यार्थी लेकर निकलें
विद्या की अर्थी सरे आम
शिक्षा मंदिर में देशद्रोह के
नारे गूँजे सुबह शाम
जब बेटा के संग बाप बैठ
मदिरा का पैग बनायेगा
तब सृष्टि नियंता भी अपनी
कृति पर ही अश्रु बहायेगा
फूलों से घायल हो तितली
खुशबू आये जब शूलों से
मरयादा हो कुंठित जब
खुद के ही रचे वसूलों से
नारी की गरिमा तार तार
हो खुले आम जब सड़कों पर
छोटे जब करने लगें व्यंग्य
अपने ही घर के बड़कों पर
जब मात पिता का घर में ही
सम्मान नहीं रह जायेगा
तब सृष्टि नियंता भी अपनी
कृति पर ही अश्रु बहायेगा
जब रिश्तों में हो राजनीति
और राजनीति में रिश्ते हों
जब पैसे महंगे हो जायें
और खून के रिश्ते सस्ते हों
श्वेत कबूतर की हत्या पर
जश्न मने जब महलों में
चन्दन बने विषैला जब
वो पीसा जाये खरलों में
माँ के ही सम्मुख बेटी का
जब चीरहरण हो जायेगा
तब सृष्टि नियंता भी अपनी
कृति पर ही अश्रु बहायेगा
अशोक मिश्र