सिर्फ़ तुम्हें सुनाना चाहता हूँ
मैं अक्सर, अपने बारे में पता करते रहता हूं,
तुम्हीं नहीं, मैं भी ख़ुद को जानना चाहता हूं।
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बारहा मुझसे सवाल न किया करो, मेरे बारे में,
मैं भी तो ख़ुद से तआ’रुफ़ करना चाहता हूं।
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कई परदों में, दिल को छुपाए रहते हैं लोग,
मैं भी चेहरे और दिल में फ़र्क रखना चाहता हूं।
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जो हुआ सो हुआ, कल रात इस बस्ती में,
मैं हर सुबह, पुरानी रात भुलाना चाहता हूँ।
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किसने कहा, मैं दीवाना हूँ, सिर्फ़ तुम्हारा,
मैं तो रकीबों से भी बराबर मिलते रहता हूंँ।
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हाँ एक अलहदा शे’र है, उसे साया नहीं करूंगा,
जब भी मिलोगे, सिर्फ़ तुम्हें सुनाना चाहता हूँ।