जब बात चली…
जब बात चली…
कस्तूरी की जब बात चली
तेरी यादों को महका आयी
ढूँढते अनुचर निश्वास मेरे
तेरी सुरभित सी तरुणाई
जब बात चली चंदा की
जाने क्यूँ तेरी याद आयी
सितारों जड़ी ओढ़ चुनर तू
झिलमिल घूँघट में शर्माई
काली घटा की बात चली
कांधे पे कुंतल बिखरायी
अटकी बूँदें हीरक कण सी
क्या तू तारों में नहा आयी
बात चली सिंदूरी संध्या की
सुभग सुंदरी तू याद आयी
हौले से चली पी मिलन को
प्रेम आलिंगन पिया समाई
जब जब कोई बात चली
बस तेरे ही अनुकूल चलाई
इस जीवन को तुम यूँ मिली
मलिन धरा नलिनी खिलाई
रेखांकन।रेखा