जब प्रेमिका ‘जैनी’ पत्नी बनी
मार्क्स को “कार्ल मार्क्स” बनाने में हम जिस प्यार की कहानी भूल रहे है उन्हें भी याद कर ले, तो प्रेम की इस अनोखी कहनी से हमें एक नया सीख मिलेगा । उनकी प्रेमिका की आत्मविश्वास ने खोये हुए व्यक्ति को इतना बड़ा इंसान बना दिया परंतु आज ऐसी प्रेमिका शायद सच्चे प्रेमी को भी नसीब न हो । प्रेम कहानी की बात जब-जब आती हैं तो दिमाग बस ‘रोमांस’ के मायाजाल में फंसते हुए, न जाने कहाँ से कहाँ तक की यात्रा शुरू कर देती है ?
उनकी प्रेम कहानी तो बॉलीवुड में दिखाए जाने वाली प्रेम कहानी जैसी तो न थी बल्कि उनके प्रेम में काफी बातें जुदा थी —
जब ‘मार्क्स’ निराशावादी दौर से गुजर रहे थे , उनके विचारों को कोई सुन नहीं रहा था तो समझने की बात तो दूर है। तब जैनी उनकी प्रेमिका (बाद में मार्क्स की पत्नी ) ने उनके विचारों को सुना-समझा और उनके विचारों को प्लेटफॉर्म देने के लिए ‘खुले मार्केट’ में लेकर गयीं यह मार्केट आज का ‘सोशल मीडिया’ जैसी हो गई है । जैनी ने उन्हें एक ऊँचे जगह पर खड़े होकर बोलने के लिए कहा – मार्किट में प्रथम दिवस उसके विचारों को किसी ने नहीं सुना यानि फेसबुक की तरह ‘न तो उन्हें लाइक मिला या न ही कमेंट’ लेकिन जैनी, ‘मार्क्स’ का हौसला बढाती रही !
फिर आया दूसरा दिन जैनी उसे फिर लेकर मार्किट आई — फिर भी श्रोता में मात्र वो ही एक रही अर्थात जैनी ! इसी प्रकार चलता रहा लेकिन जैनी हार मानने वाली स्त्रियों में से नहीं थी । फिर समय करवटें लेती रही और दूसरे सप्ताह के पहले दिन एक व्यक्ति श्रोता बन आ ही गया । जैनी को तो ‘स्मार्टफोन’ का चार्जर जैसे मिल गयी हो उन्हें तो यही चाहिए था और इस एक श्रोता के कारण ‘मार्क्स का आत्मविश्वास’ काफी आगे बढ़ा । जैनी ने सौ गुने विश्वास के साथ मार्क्स को मार्किट में बोलने के लिए प्रेरित करती रही और उस लड़की की करिश्मा के कारण — 1 महीने में मार्क्स के ‘मार्क्सवादी’ सोच को पूरे मार्किट के लोग सुनने , समझने लगे । यह मात्र एक प्रेमभरी कहानी नहीं है पर कुछ कहानी इंसान को महान बनाने के लिए बनती है।
लेकिन आज युवा पीढ़ी प्रेम के गुणगान तो करते ही हैं लेकिन वासना के रूप में ।