जब पीड़ा से मन फटता हो
जब पीड़ा से मन फटता हो
और बुनने वाला कोई ना हो
जब दिल के टुकड़े बिखरे हों
चुनने वाला कोई ना हो
जब दर्द शब्द में ढलकर भी
यू कंठ के अंदर सिमटा हो
जब लब कहने को आतुर हो
और सुनने वाला कोई न ही
तब मनकी पीड़ा आंखों के रहा से बाहर चलती है
में हल्का होते रहता हु
और दुनिया कायर समझती है।