जब पंखुड़ी गिरने लगे,
जब पंखुड़ी गिरने लगे,
और तितलियां उड़ने लगे,
जब तल्ख़ बढ़ जाये हवा में,
और दिन भी कुछ बढ़ने लगे,
जब उड़ चले अंतिम परिंदा
वो सूखी टहनी छोड़कर।
तो जान लेना अब यहाँ ,
वो प्रेम के दिन ना रहे।
वो स्नेह के दिन ना रहे।