जब नेत्रों से मेरे मोहित हो ही गए थे
जब नेत्रों से मेरे मोहित हो ही गए थे
तो उसमें छुपी नमी का राज़ जानने की कोशिश भी कर ही लेते।
जब प्रेम मेरा स्वीकार ही चुके थे
तो मेरी भावनाओं को भी भाँप ही लेते।
कोई निंदनीय कर्म तो ये है नहीं,
पुरुषार्थ की गरिमा कम करने वाले प्रयास तो ये है नही।