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28 Sep 2024 · 1 min read

जब नेत्रों से मेरे मोहित हो ही गए थे

जब नेत्रों से मेरे मोहित हो ही गए थे
तो उसमें छुपी नमी का राज़ जानने की कोशिश भी कर ही लेते।
जब प्रेम मेरा स्वीकार ही चुके थे
तो मेरी भावनाओं को भी भाँप ही लेते।
कोई निंदनीय कर्म तो ये है नहीं,
पुरुषार्थ की गरिमा कम करने वाले प्रयास तो ये है नही।

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