जब तू साथ थी
जब तू साथ थी ,जमाने में इश्क ढूंढा करते थे ।
अब तो तरसते हैं ,तुझसे बात करने के लिए ।
जब तेरे हाथ मेरे कंधे पर थे ,तू जरूरी नहीं थी।
अब उन हाथों को, महसूस किया करते हैं।
जब तू मेरे साथ थी, मैं तेरे साथ ना था ।
अब तू नहीं है तो ,कमी यू खलती है ।
जब तू मुझे देखती थी, मेरा चेहरा मुड़ा सा रहता था ।
अब तो मुड़- मुड़ के भी, तू ना दिखाई देती है।
जब इश्क था, दिल था, एहसास ना था ।
अब खंजर चुभा है ,दिल में तो महसूस होती है ।
जब तराजू में, वजन तेरा ना था ।
अब तो कीमत हमसे, अदा ना होती है ।
तुझको फेंका कहां, मालूम ना था ।
अब तो तुझे सजाने को ,जगह बार-बार साफ होती है ।
इन निगाहों ने तुझे ,गौर से देखा कब था।
अब तो दीवाना हूं ,तू ही तू आस पास होती है ।
वक्त था ,तेरी कदर ना थी।
अब तो बे-कदर ,तेरे लिए सीने में चुभन होती है।
हर्ष मालवीय
बीकॉम कंप्यूटर तृतीय वर्ष
हमीदिया कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय भोपाल