जब तुम ही थे हरजाई
तुम अपनी नजर में सही रहे, हम अपनी नजर में,
पत्थर हो चुके दिल में गमों की बसती गई खाई।
ना तुमने की कोशिश, न ही हमने जहमत उठाई
साथ रहकर भी हम दूर रहे जैसे होती है परछाई।।
दिल को अपने बहुत मनाया हर चोट हमी ने खाई,
सच को सीधा मुंह पर बोला पर बात समझ न अाई।
टूट चुके अंतर्मन से भी, प्रेम की सुलगती राख जलाई
एक भला मैं क्या कुछ करता जब तुम ही थे हरजाई।।