पूर्व नियोजन
परसों मध्यरात्रि में एक अधेड़ दम्पति परेशान हाल में परामर्श हेतु मेरे सम्मुख प्रस्तुत हुए । पतिदेव को बदहवासी में पसीने छूट रहे थे , धड़कनें तेज़ थीं , उत्तेजना से इतने बेहाल थे कि तकलीफ बताने के लिये ठीक से शब्द भी नहीं जुटा पा रहे थे । उधर उनकी हालत देख कर धर्मपत्नी इतनी घबराई हुई थीं कि उनकी घबराहट उनकी व्यथा व्यक्ति में बाधा डाल रही थी । कुलमिलाकर उनकी हालत जता रही थी कि किसी तरह हम लोग यहां तक आ गये हैं आगे डॉ साहब आप देखो , समझो और जल्दी से ठीक करो । ऐसे में ज़्यादा प्रश्न करना न केवल मरीज़ और तीमारदारों में असंतुष्टि पैदा करता है वरन इलाज में भी देरी का आभास दिलाता है । अतः बिना समय गंवाए तुरन्त उनके सामान्य परीक्षण करने के साथ साथ उनका ब्लड शुगर , ई सी जी आदि करवाने और सामान्य पाने के बाद में मैंने उन्हें तसल्ली देते हुए कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है इनकी अबतक की रिपोर्ट्स सामान्य हैं , फिर उन्हें और आश्वस्त करने तथा विस्तृत विवरण जानने के लिए मैं उनसे कुछ गपियाने लगा क्योंकि मेरे मन में अभी भी उनकी तजवीज़ को ले कर कुछ संशय शेष थे । जब एक बार भरोसा हो जाए कि कोई खास बात नहीं है और मरीज़ खतरे से बाहर है तो डॉ , मरीज़ और तीमारदार सभी आराम की मुद्रा में हो जाते हैं । उन्हें निश्चिंत पा कर और कुछ सामान्य बातें कर उनका भरोसा हासिल करते हुए मैंने उनसे पूंछा –
” अच्छा ये बताएं असल में हुआ क्या था , जिसकी वज़ह से इनकी ये हालत हुई ? ”
कुछ ढीले पड़ते फिर कुछ हिचकिचाते हुए उन्हों ने धीरे धीरे मुझसे अंतरंगता में घुलते हुए मेरे सामने एक अप्रत्याशित , कौतूहल से भरा जो घटनाक्रम प्रस्तुत किया , वही शुरू में आते ही उन्होंने ने मुझसे छुपाया था । कुछ क्षण पश्चात अपना मौन भंग करते हुए श्रीमती जी बोलीं –
” डॉ साहब , हमने आप से एक बात छुपाई है कि कल हमारे यहां पार्टी है ”
मैं – तो ”
वो बोलीं – ” तो इन्होनें आज शराब पी ली !”
मैं – ” ऐसा क्यों किया , जब कि पार्टी कल है ”
वो बोलीं ” दरअसल इन्होंने शराब छोड़ रक्खी है और यह बात सबको पता है ”
मैं ” फिर आज क्यों पी ली ?”
अब वो कुछ झिझकते हुए हुए बोलीं – ” डॉ साहब , कल हमारी मैरिज एनीवर्सरी है जिसके लिये कल घर पर पार्टी पर हमने सारे रिश्तेदारों और मित्रों को बुलाया है । जब हमने सबसे कहा है कि ये अब शराब छोड़ चुके हैं तो कल सबके सामने शराब कैसे पीते ? फिर लोग क्या कहते ?
इसलिए इन्होंने ने आज ही पी ली । ”
अपराधबोध में सिमटी भोली युगल जोड़ी की विवाह की वर्षगांठ को मूल आयोजन से एक दिन पूर्व ही मना डालने की चंचलता से युक्त इस पूर्व आयोजन में परिलक्षित उनकी आपसी सहमति मुझे गुदगुदा गई ।
जैसे कुछ भोले , शरारती बच्चे स्कूल में इन्टरवेल से पहले ही अपना टिफ़िन खा लेते हैं या फिर
अपने ही बर्थडे की केक को काटने से पहले उंगली से चाट लेते हैं ।
इसके आगे प्रश्नों को और अधिक गहराई में ले जाना नैतिक दृष्टि से उचित न था और मुझे अपनी चिकित्सकीय शंका का समाधान मिल गया था ।
अतः मैंने उन्हें पुनः आश्वस्त करते हुए और उनके भावी सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए अपनी शुभकामनाएं देते हुए इस परामर्श के साथ विदा किया कि जायें और जी लें अपनी ज़िंदगी जहां से छोड़ कर आये हैं । कभी कभी इलाज में दवा से ज़्यादा सांत्वना फायदेमंद होती है । पर मेरे परामर्श से लगता था वो कुछ ज़्यादा ही आष्वस्त हो चुके थे , तभी तो चलते चलते कुछ शंकित हो कर पतिदेव पलट कर अपनी पत्नी की ओर देखते हुए मुझसे अनुमति प्राप्त करने की दृष्टि से बोले –
” डॉ साहब लगता है दारू कुछ कम पड़ गई , अभी बोतल में करीब दो – तीन पैग और बची है क्या घर जा कर थोड़ी और पी सकता हूँ ? ”
यह सोच कर कि उनका और शराब का सेवन मेरा रात्रि जागरण करा सकता था अतः अपना पर्चा उन्हें थमाने के साथ साथ सख़्त लहज़े में उन्हें चेतावनी देते हुए मैंने कहा –
” नहीं , आप के द्वारा पुनः किसी उत्तेजक मादक द्रव्य के सेवन का जतन आपके पुनः शीघ्र स्वास्थ्य पतन का कारण बन सकता है । आपकी अति उत्तेजना गम्भीररूप से आपकी धड़कन अनियंत्रित हो कर बन्द सकती है या हृदयाघात को आमंत्रित कर सकती है अतः इससे दूर रहें ।
फिर ऐसा भी क्या ?
क्या बिना शराब के ये आप को अच्छी नहीं लगतीं ? ”
मेरा तीर चल चुका था । मेरी इस बात की दोनों पर प्रतिक्रिया भिन्न थी । मेरी इस बात को जहां पतिदेव भंगिमा बदल कर इसे किसी कड़वी दवा की तरह ले रहे थे और नज़रें चुरा रहे थे वहीं उनकी धर्मपत्नी उनकी शराब छुड़वाने के लिये अपना मनोबल एकत्रित कर रहीं थीं , जो अब पतिदेव को प्रश्नात्मक द्रष्टि से घूर रहीं थीं ।
उनकी देहभाषा से प्रतीत हो रहा था कि पति देव् अब मेरी सलाह हरगिज़ न मानें गे और बीच में से छोड़ कर आये शरारत भरे उस पूर्व आयोजन को सफल करने के लिये जान लड़ा दें गे , वहीं उनकी श्रीमती जी को देख कर लगता था कि पूरे जतन से उनकी सौतन शराब के विरुध्द एक लंम्बी लड़ाई लड़ने से अब उनको कोई रोक नहीं सकता । मेरी बात को दोनों ने अपने अपने दृष्टिकोण से समझा था , अब यह उन्हें तय करना था कि मेरे द्वारा उनको दिये गए परामर्श की परिणीति घर जा कर उनके गृहस्थ जीवन में आज किस अनुपात में मधुर प्रणय प्रलाप या कटु युद्ध आलाप में होनी है । मैं केवल उनके बीच घटित होने वाले सम्भावित यथार्थ की कल्पनामात्र कर सकता था ।
क्योकि एक सफल , सुखी वैवाहिक जीवन , अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लिए तमाम परस्पर प्रणय मिलन , विघटन और पुनर्मिलन का सन्तुलित मिश्रण होता है जो कि उनके जीवन के प्रारब्ध , संस्कारों एवम पूर्वाग्रहों पर निर्भर करता था