जब तक आपका कामना है तब तक आप अहंकार में जी रहे हैं, चाहे आप
जब तक आपका कामना है तब तक आप अहंकार में जी रहे हैं, चाहे आप करुणा ही क्यों न करे फिर भी अहंकार समाप्त नहीं होता, क्योंकि करुणा में भी आपका कामना छुपा है, की वह जीए और खुश हो उसे वो मिले ये मिले, इसीलिए कहता हूं कि ध्यान करें। आप चाह रहे हैं कि मेरा भी नाम हों मुझे भी पद मिले, फिर उस आनंद स्वरुप का क्या होगा जो आपके अंदर विराजमान हैं, सोचिए थोड़ा, जिसको सब कुछ पहले से मिला हुआ है जैसे धरती जल वायु अग्नि आकाश और पूरा ब्रह्मांड है फिर वह क्या करेगा जॉब, व्यवसाय, नाम लेकर जो की बाहरी नाम है, पद लेकर क्या करेगा, मुझे बताने का कष्ट करें। या तो आप सही है जो नाम पद प्रतिष्ठा में जी रहे हैं या भगवान कृष्ण सही है बुद्ध सही है महावीर सही है कृष्णमूर्ति या हमारे संत समाज जो कह रहे लगातार की संतुष्टि में ही सत्य छुपा है।
लेकिन आपको भय है आप के पास जो है वो भी न खो जाए, जो हम पहले से जी रहे हैं वो भ्रम नष्ट ना हो जाए, सोचिएगा थोड़ा, किसके लिए आप दौर रहे हैं किसके लिए हम क्रोध लोभ घृणा कर रहे हैं। जबाब आपके पास है की अपने लिए पत्नी के लिए बच्चे के लिए फिर आप सांसारिक जीवन में है, लेकिन यह सब यहां रह जायेगा साथ रहेगा आप का ऊर्जा वही चैतन्य हो जाता है। वही आकाश है वही शून्य है। लेकिन आप भ्रम में जीना चाहते हैं। भय लोभ करुणा के कारण हाथ जोड़ लेते हैं,लेकिन यह कोई नहीं सोचता की ये जो जीवन है इसका क्या करना है भेड़ की झुंड में रहना है या ऊपर भी देखना है आकाश में जहां शून्यता है। सोचिएगा , मैं यह नहीं कहता की सब कुछ छोड़ कर सन्यास ले, नहीं जैसे है वैसे स्वयं को स्वीकार करें। निष्काम कर्म करें जब तक जीवन है और ऊर्जा का सार्थक उपयोग करें। जीवन आपका सोचिए और आगे बढ़े।
धन्यवाद।🙏❤️
रविकेश झा।