जब-जब मेरी क़लम चलती है
वक़्त के जलते हुए सवाल पर
जब-जब मेरी क़लम चलती है
सदियों से इस देश में काबिज़
ज़ुल्मत की बुनियाद हिलती है…
(१)
जो तहज़ीब और तमद्दून के
तनहा ठेकेदार बने फिरते
उन आदम-खोरों को ताक़त
तुम्हारी चुप्पी से मिलती है…
(२)
तुम्हारी मुर्दा-दिली की वज़ह
कुछ नहीं बुजदिली के सिवा
तुम इसी क़ब्र में ढूंढ़ो ठीक से
कोई एक खिड़की खुलती है…
(३)
तख्त और ताज के बूटों तले
रौंदी जा रही मानवता के
अपने चुभते हुए लफ़्ज़ों से
चाक गिरेवां यही सिलती है…
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