जब जब बादल
जब जब बादल चाँद को ढकने लगते हैं ।
तब उसके सौ रूप चमकने लगते हैं ।।
नाजुकता से पलते मोती सीपी में ।
बाहर घिसकर अधिक दमकने लगते हैं ।।
बजे न जब तक वाद्य लगे बेकाम के ।
थाप पड़े स्वर ताल गमकने लगते हैं ।।
बजते हैं जब घुँघरु चौरासी धुन से ।
सुनकर सबके पाँव थिरकने लगते हैं।।
रात बीतने के मंजर मत पूछो तुम ।
पंछी अपने आप चहकने लगते हैं ।।
रहो सींचते इन गुलशन के फूलों को ।
ऋतु आने पर स्वयम महकने लगते हैं ।।
ये पलाश के फूल फागुनी मौसम में ।
अंगारों से लाल दहकने लगते हैं ।।
मतवाले ये लोग नई दौलत वाले है ।
खुदगर्जी में कदम बहकने लगते हैं ।।