जब जब घर से निकलो — गजल / गीतिका
जब जब घर से निकलो ,यही सोचकर निकलना।
बहुत मिलेंगे रोकने वाले ,उनके कहने से न ठहरना।
राय देना ही काम है उनका,काम करते नहीं खुद का,
है! मंजिल के राहगीरों उनके कथनों में मत लगना।।
अच्छा बुरा कहना शायद जमाने की रीत बन गई।
प्रीति तेरी सबसे रहे तू तो कभी न बदलना।।
सीखे हैं मैंने दुनिया में रहकर कई तजुर्बे।
काम आ जाए अगर यह तेरे तो मन में इनको भरना।।
कितना ही अच्छा तू कर ले कमी उसमें निकाल देंगे।
बहकाती है यह दुनिया यारा कभी ना बहकना।।
तेरा कर्म ही तुझे मंजिल दिलाएगा मेरे मितवा।
अपने कदमों के बल पर हरदम यूं ही चलते रहना।।
राजेश व्यास अनुनय