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8 Jun 2017 · 1 min read

जब चांद घिरा बादलों में।

देख अकेला रजनीश को एक दिन
आ घेरा मेघों ने।
परिवेश भयावह बना दिया
होकर एकजुट घने काले मेघों ने।

विशाल गगन में था चांद अकेला
नहीं साथ थे तारे।
विचलित चंद्र को याद आई अम्मा
बोला- मेरी मैया ये क्या हुआ ये।

आज भला घन गगन भर बादल
क्यों इतने तुम छाए।
क्या वसुंधरा ने तुम्हें बुलाया
याआए बिना बुलाए।

घड़ घड़ गरज जो तुम मृदंग बजाते
मुझे लगता यह युद्ध नाद सा।
क्यों तुम आज क्रोध में इतना
क्या हुआ है कोई हादसा।

घुमड़ घुमड़ गहराए इतना
हो जैसे वेग तुफानी।
कुछ श्यामल और कुछ धवल से
हो लगते फ़ेन उफानी।

बोलें बादल डरो नहीं इंदु,हम आए अचला के बुलाए।
हम तो ठिठोली कर रहे थे तुमसे, तुम खामखां ही घबराए।

मानव तो सुनो हुआ निरंकुश, रहा न कोई अंकुश
बरसकर हम आज धरा पर करेंगे उसे सजल खुश

सूख रही थी हरीतिमा भूमि की
इसलिए हम जल बरसा आए।
देखो प्रसन्न हैं खग मृग विहग सब रहे हैं आज बौराए।

तुम भी बिखेरो खूब चांदनी
दो धरती को दुल्हन बनाए।
देखो निहारती नीलम तुम्हें इंदु
तुम उस पर शीतल चांदनी दो बरसाए।

नीलम शर्मा

Language: Hindi
608 Views
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