जब कभी परछाई का कद
जब कभी परछाई का कद आपके कद से बड़ा हो
आदमी को चाहिये जाकर अन्धेरे मेँ ख़ड़ा हो
पान का बीड़ा सदा सम्मान का सूचक रहा है
कर ग्रहण ये मान कर शायद ज़हर इसमें पङा हो
हार तो उसकी विजय से भी कहीं ज्यादा सुखद है
जो प्रबलतम शत्रु से सम्मान की खातिर लङा हो
नाग के से पाश का आभास तो देगा सदा ही
वो दुशाला जो अनादर से मिला माणिक जड़ा हो
कर्ण बन कर त्याग दे रक्षा कवच कुण्डल अलौकिक
जब स्वयँ ही इन्द्र बन याचक तेरे द्वारे खड़ा हो
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डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव