जब कभी कोई भी सुनी दस्तक
जब कभी कोई भी सुनी दस्तक
हमको तो उनकी ही लगी दस्तक
थाप देती थी सीधी दिल पर जो
अब भी कानों में गूंजती दस्तक
वो गए छोड़ बीच रस्ते में
याद पर देती ही रही दस्तक
दौड़ कर बार बार ही देखा
कर नहीं पाये अनसुनी दस्तक
होश ही अपने खो दिये हमने
जब सुनी दिल पे प्यार की दस्तक
सो न जाए ज़मीर अपना ही
देती है रोज हाजिरी दस्तक
’अर्चना’ जिंदगी में तो सबके
मौत ही देगी आखिरी दस्तक
डॉ अर्चना गुप्ता