जबसे नैना
जबसे नैना लड़ गये हैं राह में अज्ञात से।
आँख से ओझल नहीं इक पल हुआ वो रात से।।
कर रहा अपमान सबका और मद में चूर है।
रब ने शायद दे दिया ज्यादा उसे औकात से।।
हैं सभासद मौन जब तक इक़ तराजू में तुलें।
मूर्ख ज्ञानी की परख तो होती केवल बात से।।
गुटका जर्दा पान बीड़ी दारू भी आसान है।
मुफलिसी के मारे केवल दाल रोटी भात से।।
ले रही थी मैं रजाई में पकोड़ों का मजा।
ढह चुके थे उस समय कितने ही घर बरसात से।।
ज्योति हद से ज्यादा मत दो सबको समझाइश यहाँ।
भूत लातों के कभी माने कहाँ हैं बात से।।
श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव साईंखेड़ा
जिला नरसिंहपुर (mp)