जन-गण की ज़ुबान, मनहर कवि गान।
भावों का श्रृंगार किए,
रस छंद हार लिए।
मातृभाषा यश गान,
गीत मैं सुनाती हूँ।
जन-गण की ज़ुबान,
मनहर कवि गान।
प्रेयसी प्रणय डूबी,
प्रीत में सुनाती हूँ।
राम अवतार लिए,
पद्म हस्त धार लिए।
घनाक्षरी में विधान,
मीत मैं सुनाती हूँ।
तुलसी औ रसखान,
कबीरा की पहचान ।
किशन किशोरी मीरा
रीत मैं सुनाती हूँ।
काव्य के कलेवरों में,
देश गाँव शहरों में।
राष्ट्र गान जन मन,
जीत मैं सुनाती हूँ।
अंग में उमंग भरे,
वायु संग मेघ झरे।
दुख मिटे खुशियों की,
जीत मैं सुनाती हूँ।
नीलम शर्मा ✍️