जन कवि हूँ
जनता मुझसे पूछ रही मैं क्या बतलाऊ,
जनकवि हुँ साफ कहूंगा मैं क्यों हकलाऊ ।
वंचना,भूख,गरीबी आज भी,
सत्तर वर्षो की नाकामी को क्यों झुठलाऊ,
जनकवि हूँ साफ कहूंगा मैं क्यों हकलाऊँ ।
लोकतंत्र बना कुटिल-तन्त्र अपराधी संरक्षक,
इस विकृति पर चुप क्यों रह जाऊँ,
जनकवि हूँ साफ कहूंगा मैं क्यों हकलाऊँ ।
किसानों के दाह और व्यापम के शव-राज,
इस व्यथा को भला कैसे झुठलाऊँ,
जनकवि हूँ साफ कहूंगा मैं क्यों हकलाऊँ ।।