जन कल्याण कारिणी
जन कल्याण कारिणी
(वन देवी मां सीता )
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रचनाकार, डॉ विजय कुमार कन्नौजे छत्तीसगढ़ रायपुर आरंग अमोदी
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दोहा
वन में रहते मां सीता
,धर वनदेवी रूप।
जगत जननी दी बालक,
राम लखन अनुरूप।।
गुरु भक्ति में लीन रहे
लवकुश जिनका नाम।
धनुर्विद्या में निपुण रहे
सुंदर चतुर सुजान।।
बाल्मीकि के शिष्य बन
करते थे नित काम।
श्रीराम कथा श्रवण किया
बालक रहे अज्ञान।।
पिता श्री का पता नहीं
पर पिता रहे श्री राम।
श्रीराम लीला विचित्र था
सुनत रहे गुणगान।।
जान ना पाया सीता को
समझा वन देवी रूप।
वनवासी रूप में मां सीता
ठंड सहती और धुप।।
नौ रूप में नवदुर्गा बनकर
खेलती सारी खेल।
आदि शक्ति आदि भवानी
कष्ट समझी लवलेश।।
बता न सकी वह बच्चों को
माता पिता का देश।
मां सीता भी छुपी रही
रख वन देवी वेश।।
जनकल्याण कारिणी मां
वन देवी का रूप।
जग जननी मां भवानी
ठंड सहे और धुप।।
कवि विजय की वंदना
सुन ले मात हमारी।
आदि शक्ति वन देवी मां
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दीजिए शरण तुम्हारी