जन्म-लग्न यह बड़ा अनोखा
खुले पाट, जंज़ीरें टूटी
अब तक जो किस्मत थी रूठी
भाग्योदय हो गया वासुदेव
कारा में जननी कह बैठी।।
हुई अष्टमी बरसा पानी
जन्म-लग्न था नई कहानी
वासुदेव सुन रहे ध्यान से
कारा भीतर आकाशीय वाणी।।
गंतव्य पता ज्यों उन्हें चला था
यमुना उस क्षण पार किया था
लीलाधर की अजब थी लीला
जन्म समय भी खूब किया था।।
आज अष्टमी कृष्ण पधारे
मात यशोदा को हैं प्यारे
गोकुल का भी भाग्य है बदला
गोपालों के हुए दुलारे।।
बाल-रूप यह बड़ा अनोखा
मुग्ध हुआ जिसने भी देखा
सूरदास विख्यात हो गए
लीला वर्णन कर अनदेखा।।
शंकर आँजणा नवापुरा धवेचा
बागोड़ा जालोर-343032