*जन्म-मरण : नौ दोहे*
जन्म-मरण : नौ दोहे
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1
गिनती की सॉंसें मिलीं, गिनती के दिन-रात
मानव से माटी कहे, क्या तेरी औकात
2
चार दिवस का गर्व है, रूप-संपदा-देह
सॉंस गई किसको रहा, मुर्दा तन से नेह
3
लिखा मरण के साथ ही, दिवस और तिथि-माह
एक न ज्यादा सॉंस की, मानव कर तू चाह
4
जब आए सुख की घड़ी, जी ले दिन यह चार
अकस्मात विपदा सदा, करती बंटाधार
5
तन के भीतर रोग है, छिपी रोग में मौत
युद्ध बराबर कर रही, जीवन से ज्यों सौत
6
नहीं अभी तक मिल सका, निराकार भगवान
आकृति जिसकी कुछ नहीं, बस केवल अनुमान
7
आना-जाना चल रहा, सदियों से अविराम
जन्म-मरण का क्या पता, होता है क्या काम
8
पॉंच तत्व से है परे, ईश्वर की पहचान
परे मिलेगा देह से, जब लगता है ध्यान
9
पत्थर को पूजो मगर, रखना इतना बोध
निराकार कैसे मिले, वांछित यह ही शोध
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451