जन्म दिन
चार -चार बहनों का वो एक भाई,
माता -पिता की आँखों का तारा,
बहनों की ना जाने कितनी उम्मीदों, और,
ना जाने किस -किस समय का सहारा,
भैया की सालगिरह कैसे मनाएं, क्या -क्या और कैसे उपहार लाएं,
ग़रीबी एक बार फ़िर ढीठ सी आकर,
खड़ी हो गई और लगी मुँह चिढ़ाने,
इस बार लेकिन वे चारों मिलकर, ग़रीबी से हरगिज़,
नहीं हारने की,
अभी जन्मदिन में छः दिन हैं बाक़ी, बोली बड़ी –
दुकान का लाला, एक रुपया दे जो पिरो लें एक माला,
बस! चारों जुट गईं माला पिरोने,
गुल्लक में रुपये लगे आ के गिरने,
जन्मदिन यूं भैया का सबने मनाया,
माता -पिता का भी दिल भर सा आया, की ये दुआ,
रहे यूं ही खिलता, महकता रहे यूं,
भैया और बहनों का,
ये नेह -नाता।