जन्माष्टमी
आओ मनाये सब मिलकर पर्व जन्माष्टमी।
गली – गली सज रहे हैं दही और हांड़ी।
धूम मचाओ आओ’सब गोपाल और गोपी।
नाचे – गाये करे धमाल और जमकर मस्ती।
एक ना बचे चुन -चुन कर तोड़े सारे मटकी।
बांध दो चाहे कोई कितनी भी ऊँची।
आओ मनाये सब मिलकर पर्व जन्माष्टमी।
घूम रहे हैं गली -गली दोस्तों की टोली।
मन मैं उत्साह और जोश है भरी।
आज तोड़ेंगे मटकी सारी की सारी ।
देख रहे हैं हर्षित हो कर सारे नर – नारी।
जुट रहे हैं आह्लादित हो सारे नगरवासी।
आओ मनाये सब मिलकर पर्व जन्माष्टमी।
एक -एक कर मिलते सारे संगी साथी।
हाथ से हाथ मिलते और बनते हैं मुट्ठी।
एक के बाद एक चढ़ते ताल – मेल बिठाती।
एकता की देखो है ये कैसी शक्ति।
सब मिलकर देते हैं टक्कर तोड़ते मटकी।
गोविंद आला रे की शोर मचाती।
आओ मनाये मिलकर पर्व जन्माष्टमी।
रिमझिम हो रही है बारिश की बुंदा-बूंदी।
दिल मैं उमंग है सब के मन में भक्ति।
बाल – गोपाल हो चाहे हो बूढ़ा – बूढ़ी।
सम्पूर्ण वातावरण वात्सल्य से है भर उठी।
सदा रहे ख़ुशी के ये पल चाह है ये सब की।
आओ मनाये मिलकर पर्व जन्माष्टमी।
गली – गली सज रहे दही और हांड़ी।
-लक्ष्मी सिंह
– नई दिल्ली