जन्नत व जहन्नम देखी है।
पेश है पूरी ग़ज़ल…
क्या किसी ने खुद से जन्नत व जहन्नम देखी है।
हमने तो बस लोगो से सुनी किताबों में पढ़ी है।।1।।
गर दीन पर सवाल करूंगा तो वे अदब कहोगे।
इसलिए हमने भी सबके साथ हां में हां भरी है।।2।।
दीन क्या इक भी हर्फे आयत ना मिटा पाओगे।
कुरां की जिम्मेदारी खुदा ने अपने जिम्मे ली है।।3।।
नाम उनका अमर हो गया है उनकी गजलों से।
बनकर नगमा जानें कितने जुबानों पर सजी है।।4।।
एक वक्त था सारे शहर की शान थी ये हवेली।
रौनके रंग जिसकी दीवारों पे अबना रह गई है।।5।।
दीवानगी का आलम है हर सम्त मदहोशी है।
इन फिजाओं में खुशबू जैसे फूलो की फैली है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ