जनाज़ा ख्वाबों का …
ज़िन्दगी के कांधों पर ,
लेकर जनाज़ा ख्वाबों का …
उजड़े बिखरे ,टूटे फूटे
चल रहे थे ..जल रहे थे …
न अश्क थे, न दर्द था ..
बस खुश्क आँखे ,
बेहिस सा दिल .
ये साथ थे पर यूँ की जैसे ,
खुद से रूठे ,खोए खोए ..
चल रहे थे , जल रहे थे .
न क़रार था इनमें कोई,
न खुद से ही इन्हें प्यार था |
थी ज़िन्दगी जो मिली इन्हें ,
मान के इसको सज़ा सी .
ये सुलगते , घुटते तड़पते
ज़हर का सा घूंट पीते ..
चल रहे थे जल रहे थे |
ज़िन्दगी के कांधों पर ,
लेकर जनाज़ा ख्वाबों का …
उजड़े बिखरे ,टूटे फूटे
चल रहे थे ..जल रहे थे..