जनाजे आ गये फिर सरहदों से
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मुझे घिन आ रही है बुज़दिलों से
नहीं उम्मीद थी ये कायरों से
सफ़ीने लौट —- आए साहिलों से
बरसता है —–समंदर बादलों से
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लडे़ थे मरते दम तक जो सिपाही
नहीं था ख़ौफ़ उनको सरफिरों से
मिटा है नाम अब अम्नो अमाँ का ,
सभी की दोस्ती है नफरतों से
नही वश म जब चला तो मिट गये
जनाजे आ गये फिर सरहदों से
लिखे थे उसने मुझको ख़त कभी जो
अभी आती है ** खुश्बू उन खतों से
गुलिस्ताने-वतन . लूटा गया है
सुने अब कौन नग्मे बुलबुलों से
कसम माँ भारती की नौजवानों
रहेंगे लेके बदला जालिमों से
कदम मेरे नहीं अब रुकने वाले,
सदाएं आ रही हैं चूड़ियों से
अभी से हम अहद लेते हैं यारो,
नहीं पीछे हटेगें नेकियों से
तिरंगे पर फ़ना है आज “प्रीतम”
हुई नफ़रत कफन की चादरों से