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30 Apr 2017 · 1 min read

जनाजे आ गये फिर सरहदों से

????????
मुझे घिन आ रही है बुज़दिलों से
नहीं उम्मीद थी ये कायरों से

सफ़ीने लौट —- आए साहिलों से
बरसता है —–समंदर बादलों से
?????????

लडे़ थे मरते दम तक जो सिपाही
नहीं था ख़ौफ़ उनको सरफिरों से

मिटा है नाम अब अम्नो अमाँ का ,
सभी की दोस्ती है नफरतों से

नही वश म जब चला तो मिट गये
जनाजे आ गये फिर सरहदों से

लिखे थे उसने मुझको ख़त कभी जो
अभी आती है ** खुश्बू उन खतों से

गुलिस्ताने-वतन . लूटा गया है
सुने अब कौन नग्मे बुलबुलों से

कसम माँ भारती की नौजवानों
रहेंगे लेके बदला जालिमों से

कदम मेरे नहीं अब रुकने वाले,
सदाएं आ रही हैं चूड़ियों से

अभी से हम अहद लेते हैं यारो,
नहीं पीछे हटेगें नेकियों से

तिरंगे पर फ़ना है आज “प्रीतम”
हुई नफ़रत कफन की चादरों से

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