जनाजा
जिसे समझा था हमने हीरा ,
वोह तो शीशा निकला ।
नजरों से गिरकर टूट गया ,
मगर उसके टुकड़े तो फिर भी ,
और सदा के लिए चुभते है आंखों को ।
और दिल को चीर देते है ।
खून के आंसू रोते है हम हर पल ,
मगर वोह मनहूस शीश ही जाने क्यों ,
जिंदगी से सदा के लिए दूर नहीं होता ।
जिसकी वजह से हमारी उम्मीदों का ,
हमारी खुशियों और तमन्नाओं का जनाजा निकला ।